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लेखनी कहानी -04-Oct-2022 जालोर की रानी जैतल दे का जौहर

भाग  : ३


जालोर के शासक कान्हड़देव, रानी जैतल दे और राजकुमार बीरमदेव रंगशाला में आ गये । उनकी अगवानी सेनापति बीका जी दहिया कर रहे थे । बीका दहिया रणबांकुरा वीर सेनानी था जिसकी बहादुरी के कारनामे पूरे राजस्थान में चर्चित थे । एक तो जालोर का अभेद्य किला उस पर कान्हड़देव जैसा प्रतापी शासक और तीसरे बीका दहिया जैसा शूरवीर सेनापति । इस गठजोड़ ने जालोर को समकालीन इतिहास में अजेय बना दिया था । रानी जैतल के सानिध्य में राजकुमार बीरमदेव इस संगठन में सीमेंट का काम कर रहे थे । 
सेनापति बीका दहिया ने समस्त अस्त्र-शस्त्रों का परिचय कराते हुए तलवार,असि,चंद्रहास, परशु , भाला, खांडा, खड़ग, बरछी , कटार आदि का पूजन करवाया । फिर शिरस्त्राण और ढालों का भी पूजन किया गया । युद्ध में जितना महत्व अस्त्र-शस्त्रों का होता है उससे कहीं अधिक शिरस्त्राण और ढालों का होता है । यह बात जैतल दे ने राजकुमार को समझाई थी । जब तक दुश्मन के वार से बचेंगे नहीं तो दुश्मन का सफाया कैसे कर पायेंगे ? युद्ध में आक्रमण के साथ बचाव भी बहुत आवश्यक होता है । 

अस्त्र-शस्त्रों की पूजा के पश्चात ये सभी लोग युद्ध शाला में आ गये । यहां पर विशाल जनता पहले से ही मौजूद थी । चारों ओर "जय जालोर, जय कान्हड़देव" ,"जय जैतल दे" , "जय बीरमदेव" के नारों से जालोर की धरती गुंजायमान हो रही थी । लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था । वर्ष का सर्वश्रेष्ठ योद्धा कौन बनेगा इसका निर्धारण होना था । जालोर राज्य में कान्हड़देव ने यह परंपरा स्थापित कर दी थी कि मल्ल युद्ध, द्वंद्व युद्ध और तलवार युद्ध के आधार पर सर्वश्रेष्ठ योद्धा का चयन किया जाता था । इससे राज्य को एक परम शूरवीर सैनिक मिल जाता था और दूसरे शूरवीर सैनिकों की पहचान भी हो जाती थी जिन्हें सेना में विभिन्न पदों पर रख लिया जाता था । 

आज का आकर्षण का केन्द्र राजकुमार बीरमदेव ही थे । प्रतियोगिता के नियमों के अनुसार 15 वर्ष पूरे होने के पश्चात ही कोई युवक इस प्रतियोगिता में भाग ले सकता था । राजकुमार बीरमदेव इस वर्ष 15 वर्ष के हुए थे अत : वे पहली बार इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले थे । लोग राजकुमार बीरमदेव की एक झलक देखने के लिए आतुर थे । राजा कान्हड़देव सामने बने विशाल प्रांगण में आ गये । वहां पर पहले से ही सिवाना के राजा शीतलदेव विराजमान थे । उन्हें इस आयोजन पर विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था । मंत्री जैतसिंह उनकी अगवानी में लगे हुए थे । 

रानी और अन्य महिलाओं के लिये अलग से व्यवस्था की गई थी । रनिवास सदैव झीने पर्दे की ओट में रहता है । चांद तो हमेशा ही बदलियों के पीछे से झांकता हुआ अच्छा लगता है । खुले में चांद को नजर लगने की संभावना रहती है । रानी जैतल दे यद्यपि 15 वर्ष के पुत्र की मां थीं किन्तु रूप लावण्य में वे रानी पद्मिनी से कम नहीं थी । ये अलग बात है कि उनके सौन्दर्य का उतना जिक्र नहीं हुआ जितना पद्मिनी का हुआ था । शायद इसका कारण मलिक मोहम्मद जायसी हैं जिन्होंने "पदमावत" लिखकर उन्हें अमर बना दिया ।  

यहां पर सिवाना की रानी मैना दे अपनी राजकुमारी हेमा दे के साथ पहले से ही मौजूद थी । उन् आज के कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से बुलवाया गया था । राजकुमारी हेमा दे अभी 12 वर्ष की हुईं थीं । यौवन रूपी बगिया की दहलीज पर खड़ी थीं वे । बदन में कसावट आने लगी थीं । आंखों में मदिरा भरने लगी थीं । जुल्फों के नाग फन उठाने को आतुर होने लगे थे । नितंब मद के भार से फैलने लगे थे इस कारण चाल भी कुछ कुछ मतवाली होने लगी थी । कांचली लंहगा में राजकुमारी बड़ी खूबसूरत लग रही थी । रानी जैतल दे ने राजकुमारी के ललाट पर एक चुंबन अंकित करते हुए उसके सिर पर हाथ फिराया और अपने पास में बिठा लिया ।
"हमारी हेमा दे तो अब बड़ी हो गई हैं और हैं भी बहुत खूबसूरत । अब तो इनके विवाह की तैयारी शुरू कर दो रानी मैना दे सा । क्यों क्या खयाल है" ? 
रानी मैना दे रानी जैतल दे की ओर देखकर बोलीं 
"खयाल तो बहुत नेक है राणी सा । पर अभी तो राजकुमारी जी छोटी हैं । अभी दो चार साल और लगेंगे इन्हें शादी लायक होने में । सोलहवें सावन में परणायेंगे इन्हें" 
"बात तो सही कह रही हो राणी सा । कोई लड़का देखा है क्या कहीं" ? 
"अभी तक तो नहीं देखा है पर एक लड़का हमारी निगाह में है । हमें लगता है कि वह लड़का राजकुमारी जी के लिए सर्वथा उपयुक्त रहेगा" 
"कौन है वो खुशनसीब ? हमें भी तो पता चले" 

सिवाना की रानी मैना दे चुप रहीं । वह कहती तो कैसे कहती कि हां , हमारी निगाह में राजकुमार बीरमदेव हैं । पर इस बात पर क्या पता रानी जैतल दे बुरा मान जायें इसलिए चुप रहना ही बेहतर समझा उन्होंने । 

रानी मैना दे को चुप देखकर रानी जैतल दे भी चुप हो गईं और वे मल्ल युद्ध का आनंद लेने लगीं । एक से बढकर एक योद्धा अपना पराक्रम दिखा रहे थे । जो विजेता थे उन्हें अलग बैठाया जा रहा था । विजेताओं के चेहरे पर उल्लास सूरज की तरह दमक रहा था । वे एक दूसरे को देखकर मन ही मन एक दूसरे की शक्ति का आकलन कर रहे थे और भावी रणनीति बना रहे थे क्योंकि अगले चक्र में उन्हें आपस में ही भिड़ना था । 

द्वितीय चक्र शुरू हुआ । यह चक्र ज्यादा रोमांचक था क्योंकि इस चक्र के सभी प्रतिभागी किसी न किसी को पराजित करके इस चक्र में आये थे । अत: उनमें जोश और फुर्ती ज्यादा थी । इस चक्र में चार विजेता घोषित हुए थे । उनके मध्य फिर से मुकाबला कराया गया । इस तरह अंत में एक विजेता घोषित हो गया । अब उस विजेता का मुकाबला राजकुमार बीरमदेव से होना था । राजकुमार को ये छूट थी । राज परिवार का सदस्य सीधे ही फाइनल में लड़ता था । 

राजकुमार बीरमदेव अखाड़े में आ गये थे । उनका गोरा बदन सोने की भांति दमक रहा था जिसके रिफ्लेक्शन से लोगों की आंखें चौंधिया रही थीं । बीरमदेव के शरीर पर एक भी बाल नहीं था । लड़कियों की तरह चिकना लग रहा था उनका शरीर । एक तो गठीला बदन उस पर एकदम गोरा चिट्टा रंग और शरीर पर एक भी बाल नहीं । रनिवास में हाहाकार मच गया था । लोग उनकी सुंदरता पर मोहित हो रहे थे और रानी जैतल दे आनंद से भर उठी थीं । रानी मैना दे तो उनकी सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गई थीं और भगवान से प्रार्थना करने लगीं थीं कि राजकुमार को विजयी बना दें । मन ही मन वे उन्हें अपना दामाद बना चुकी थीं ।  राजकुमारी हेमा दे भी बीरमदेव के सुंदर शरीर को आश्चर्य से देख रही थीं । उनकी बड़ी बड़ी आंखें और भी बड़ी हो गई थीं । राजकुमार के गौर वर्ण के सम्मुख राजकुमारी का रंग फीका लग रहा था । राजकुमारी कभी बीरमदेव को तो कभी अपनी मां मैना दे को देख रही थी । 

राजकुमार के सामने जो पहलवान खड़ा था वह चार कुश्ती जीत चुका था । इस प्रकार उसका जोश सातवें आसमान पर था । उसकी उम्र लगभग 25 वर्ष की थी । राजकुमार बीरमदेव का बदन यद्यपि गठीला था मगर वह उस युवक के सामने हल्का लग रहा था । जनता "जय जालोर, जय बीरमदेव " के नारे लगा लगाकर उनमें जोश भर रही थी । राजा कान्हड़देव, सीतलदेव और सेनापति बीका , मंत्री जैतसिंह वगैरह सब लोग दोनों खिलाड़ियों का उत्साह वर्धन कर रहे थे । दोनों योद्धा जी जान लगा रहे थे जीतने के लिये । युवक यद्यपि बलिष्ठ था पर राजकुमार चपल थे । जब जब युवक राजकुमार पर आक्रमण करते राजकुमार सावधानी से उस आक्रमण से बच निकलते । इससे युवक थोड़ा चिढ गया था और बार बार वार विफल हो जाने पर उसे गुस्सा आने लगा था । बस, यहीं मात खा गया वह । गुस्से में कोई भी दांव सही नहीं लगता है इसलिए गुस्से में लिया गया हर निर्णय अक्सर गलत होता है । यही बात जैतल दे ने राजकुमार को सिखाई थी । राजकुमार इसी अवसर की तलाश में थे । अब उन्होंने जो दांव लगाया तो वह युवक सीधे चित्त हो गया । पूरा पाण्डाल तालियों से गूंज उठा । "राजकुमार बीरमदेव अमर रहे" के नारों ने बता दिया कि इस मल्ल युद्ध का परिणाम क्या रहा था । 

इसी प्रकार द्वंद्व युद्ध और तलवार बाजी की प्रतियोगिता भी राजकुमार ने जीत ली थी और वे जालोर के नये "सर्वश्रेष्ठ योद्धा" बनकर उभरे । राजा कान्हड़देव और रानी जैतल दे की खुशियों का कोई वारापार नहीं रहा । राजकुमार बीरमदेव के रूप में जालोर को अपना भविष्य दिखाई दे रहा था । कान्हड़देव ने दोनों को क्रमश: प्रथम और द्वितीय स्थान के पुरुस्कार प्रदान करने के लिये सिवान के राजा शीतलदेव को आगे कर दिया । मेहमानों को उचित आदर सम्मान देने का रिवाज राजस्थान में शुरू से ही रहा है । राजा शीतलदेव ने राजकुमार बीरमदेव को सीने से लगा लिया और उन्हें बहुत बहुत बधाइयां दी तथा "जालोर का भविष्य" घोषित कर दिया । 

क्रमश : 

श्री हरि 
6.10.22 

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3 Comments

Chetna swrnkar

10-Oct-2022 06:48 PM

Bahut khub likha

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Gunjan Kamal

09-Oct-2022 09:27 AM

बेहतरीन भाग

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Renu

09-Oct-2022 12:13 AM

👍👍

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